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गोवर्धन साहित्य महाविद्यालय

  

हिंदी विद्यापीठ के अंगीभूत गोवर्धन साहित्य महाविद्यालय में भारत सरकार की योजना के अंतर्गत विद्यापीठ द्वारा संचालित प्रवेशिका , साहित्य भूषण और साहित्यालंकार के लिए अहिन्दी भाषी प्रदेशों के , जैसे - मणिपुर, नगालैंड , असम आदि उत्तर - पूर्व राज्यों से आने वाले छात्र - छात्राओं के अध्ययन की व्यवस्था है । पूर्णकालीन सुयोग्य प्राध्यापकों और विद्वानों की देख रेख में प्रवेशिका एवं साहित्य भूषण परीक्षा के लिए दो - दो वर्षों के सत्रों में तथा साहित्यालंकार ( त्रिवर्षीय ) तीन वर्षों के सत्रों में हिंदी भाषा और साहित्य के सांगोपांग अध्ययन एवं पठन - पाठन की परंपरा सन १९५३ ई० से है । हिंदी साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान स्वर्गीय डॉ० लक्ष्मी नारायण सुधांशु ( पूर्व अध्यक्ष , बिहार विधानसभा ) प्रथम प्राचार्य नियुक्त हुए । वर्तमान में हिंदीतर छात्र - छात्राओं को हिंदी साहित्य के अलावे टंकण , आशुलिपि , संगीत एवं कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है । गोवर्धन साहित्य महाविद्यालय, हिंदी विद्यापीठ, देवघर मुख्य भवन के प्रथम तल में अवस्थित है , जिसमें प्राचार्य कक्ष, कार्यकर्त्ता कक्ष एवं वर्ग कक्ष आदि हैं । गोवर्धन साहित्य महाविद्यालय में केवल हिंदीतर छात्र - छात्राओं के लिए आवासीय रूप से पठन - पाठन की व्यवस्था है ।

छात्र - छात्राओं के शारीरिक विकास के लिए फुटबॉल , बॉलिबाल आदि खेल कूद के साधन उपलब्ध कराये जाते हैं । इसके अतिरिक्त वार्षिक खेल कूद प्रतियोगिता का भी आयोजन प्रति वर्ष इन छात्र - छात्राओं के बीच किया जाता है और अव्वल आने वाले को उचित पारितोषिक भी दिया जाता है । प्रति वर्ष इन छात्र - छात्राओं के सामूहिक वन भोज ( पिकनिक ) और शैक्षणिक पर्यटन की भी व्यवस्था की जाती है ।

प्रति वर्ष महाविद्यालय में साहित्यकारों की जयंतियों और विचार गोष्ठियों का भी आयोजन किया जाता है । साथ ही राष्ट्रीय स्तर की वाक् - स्पर्धा में हिंदीतर छात्र - छात्राओं को विद्यापीठ की ओर से भाग लेने के लिए दूसरे प्रदेशों में भेजा जाता है ।

हिंदी विद्यापीठ को प्रगति पथ पर निरंतर अनुप्राणित करते रहने वाले राजेंद्र बाबू की पुण्य स्मृति में राजेंद्र शोध संस्थान १९६३ ई० में विद्यापीठ के अंगीभूत गोवर्धन साहित्य महाविद्यालय में प्रारंभ किया गया । टी० एन० बी० कॉलेज, भागलपुर के अवकाश प्राप्त प्राचार्य, डॉ० जनार्दन मिश्र इस शोध संस्थान के प्रथम निदेशेक के रूप में अधिष्ठित हुए ।




























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